Monday, March 9, 2020

बुंदेलखंड: कोरोनावायरस के कारण होली की चौपालें सूनी, फगुआ गीत गुम!

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डिजिटल डेस्क, बांदा। होलिका दहन से पूर्व गांवों की चौपालों में होरियारों की जमात लगा करती थी और फगुनइया तोरी अजब बहार, सड़क मा नीबू लगा दे बालमा जैसे बुंदेली फगुआ (होली गीत) गाए जाते थे। लेकिन इस साल कोरोनावायरस का डर शहर के अलावा देहातों में भी इस कदर छाया हुआ है कि न चौपालें सज रही हैं और न ही फगुआ ढोलक की थाप ही सुनाई दे रही है।

बुंदेलखंड के गांव-देहात में पुराना रिवाज रहा कि होलिका दहन के एक सप्ताह पहले गांवों में होरियारों की चौपालें सज जाया करती थीं और खेती-किसानी के काम से मुक्त होकर शाम को किसान इन चौपालों में फगुनइया तोरी अजब बहार सड़क मा नीबू लगा दे बालमा जैसे फगुआ (होली) गीत गाकर दस-बीस की संख्या में होरियारे एक-दूसरे को मात देने की कोशिश किया करते थे। लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं होता दिखाई दे रहा है। बड़े बुजुर्ग होरियारों का कहना है कि भीड़ से कोरोना बीमारी फैलने का डर है, इसलिए कोई घरों से बाहर निकलने को तैयार नहीं है।

बांदा जिले के तेंदुरा गांव के बुजुर्ग होरियार सुधानी बाबा (75) अपनी बोल-चाल की बानी (भाषा) में बताते हैं कि झुंड में बैठने से कोउ-रोना बीमारी फैलती है। इस बीमारी से परिवार में कोई रोने वाला नहीं बचता है। इसलिए यह होली बिना फगुआ गीत गाए ही अपने-अपने घरों में चुपचाप मनाएंगे। इसी गांव की महिला होरियार दशोदिया कहती है, डॉक्टरनी बहन जी आई थीं और कह रही थीं कि एक-दूसरे के पास न बैठना और न छूना, नहीं तो कोउ-रोना (कोरोनावायरस) बीमारी पकड़ लेगी, जिसका इलाज नहीं होता। इसलिए हम अपने काम से मतलब रखते हैं। पिछले साल जैसे न फगुआ गाएंगे और न ही रंग-अबीर ही किसी को लगाएंगे।

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महिला आगे कहती हैं, पिछले साल खेत से शाम को लौटकर घर आते थे और खाना-पीना कर ठकुराइन दाई की चौपाल में आधी रात तक फगुआ गीत गाया करते थे, लेकिन अब डॉक्टरनी बहन जी ने डरवा दिया है तो ठकुराइन भी अपने पास नहीं बैठाती हैं। नरैनी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) के अधीक्षक डॉ. बी.एस. राजपूत कहते हैं, कोरोनावायरस (कोविड-19) से किसी को डरने की जरूरत नहीं है। लोग भीड़ में जमा होने से बचें और बुखार, खांसी या सांस लेने में दिक्कत हो तो तुरंत नजदीकी सरकारी अस्पताल में जांच कराएं।

उन्होंने कहा, यदि किसी में ऐसे लक्षण हों तो उससे दूरी बनाए रहें, छींक आने पर रुमाल या कपड़े का इस्तेमाल जरूर करें। वह कहते हैं कि होरियार हो या अन्य सार्वजनिक कार्यक्रम, भीड़ वाले सभी कार्यक्रम स्थगित करना ही बेहतर है। हाथ मिलाने की आदत छोड़ दूर से नमस्ते करने की आदत डालनी होगी और साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। कुल मिलाकर कोरोनावायरस के डर से पीढ़ियों पुरानी फगुआ रीति-रिवाज पर आंच आ गई है और अब होलिका दहन के बाद गले मिलकर रंग-गुलाल भी खेलने से परहेज रहेगा।

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Bundelkhand: Holi's chaupalas are lost due to corona, fagua song is missing!
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